Monday, January 10, 2011

New Year: "2010 के व्यक्ति" और "2011 में छत्तीसगढ़"


इस ब्लॉग पर पिछले साल एक नई प्रथा शुरू हुई थी: बीते वर्ष में जिस व्यक्ति ने हमारे प्रदेश (छत्तीसगढ़) को अच्छे या बुरे के लिए सबसे ज्यादा प्रभावित किया, उसे "साल के व्यक्ति" का खिताब दिया गया और आने वाले वर्ष में क्या होगा, उसकी भविष्यवाणी की गई.


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2010 के व्यक्ति


२०१० के "साल के व्यक्ति" (Person of the Year) डॉक्टर विनायक सेन हैं. उनके मुकद्दमे- और सजा- ने हमारे प्रदेश को भारत का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण बुद्धिजीवी-दुनिया के आकर्षण का केंद्र बना दिया है. ये हमारे लिए गौरव की बात नहीं है.


उनके परिवार और केस, दोनों से मैं बहुत करीब से जुड़ा हुआ हूँ. उनका फ्लैट हमारे रायपुर के घर के ठीक सामने है. डॉक्टर सेन मेरी माँ के मेडिकल कॉलेज (वेलूर) में सीनियर थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद, हाल में आज़ाद हुए बंगलादेश जाकर उन्होनें भारत-पाकिस्तान युद्ध (१९७१) में सबसे क्षतिग्रस्त हुए इलाकों में निशुल्क चिकित्सा-सेवा दी. कई सालों तक डॉक्टर सेन अपनी पत्नी इलेना के साथ धमतरी और बालोद क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में गरीबों का इलाज करते रहे. गुरुर के पास आज भी उनका छोटा सा क्लीनिक है, जो लगभग बंद पड़ा है. वे मेरे पिता जी के शासनकाल में छत्तीसगढ़ मेडिकल बोर्ड के सदस्य थे: उस दौरान वे मितानिन (midwife) योजना के सूत्रधार बने, जो आज पूरे प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में लागू हो चुकी है. इस योजना के अंतर्गत गांवों की मितानिन को आवश्यक चिकित्सा प्रणाली- जैसे मलेरिया और दस्त का उपचार- में प्रशिक्षण देकर दूरदराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी को बहुत हद तक पूरा किया जा रहा है.
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Saturday, January 02, 2010

New Year: "२००९ के व्यक्ति" और "२०१० में छत्तीसगढ़"


दो नई परम्पराएं
वैसे तो ३१ दिसम्बर और १ जनवरी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अन्य ३६३ दिनों की तरह सिर्फ दो तारीखें है. प्राकृतिक रूप से ये दूसरे दिनों से अलग नहीं हैं: दोनों दिन सुबह सूरज उगता है, और आकाश का अपना सफ़र पूरा कर शाम को ढल जाता है; चाँद-सितारे उसकी जगह ले लेते हैं.

देखा जाए तो इन दोनों तारीखों का महत्व मात्र मानव प्रजाति तक ही सीमित है और इस प्रजाति-विशेष पर भी इनका प्रभाव केवल मानसिक होता है. फिर भी इस मानसिक प्रभाव का अपना महत्त्व है: दोनों दिनों में अतीत और भविष्य का अनोखा सम्मिश्रण है: हर साल ३१ दिसम्बर की रात को जब १२ बजता है, तब उस एक क्षण में बीते हुए साल के गुजरने और नए साल के आने से जुड़ी सैकड़ों-अनगिनत भावनाओं का एकाएक समावेश हो जाता है.

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, मैं इस वर्ष से ब्लॉग पर दो नई परम्पराओं की शुरुआत कर रहा हूँ. पहली: अतीत को सलाम करते हुए, हर वर्ष उस व्यक्ति को
"साल के व्यक्ति" के खिताब से नवाज़ा जाएगा जिसने हमारे प्रदेश, छत्तीसगढ़, को सर्वाधिक प्रभावित किया है. दूसरी: आने वाले साल में क्या-क्या होगा, उसकी भविष्यवाणी (और साल के अंत में, उस भविष्यवाणी का बेबाक विश्लेषण!).

भविष्य में इन दोनों पहलूओं पर आपके सुझाव आमंत्रित रहेंगे; और उन्हें ब्लॉग पर प्रमुखता से प्रकाशित भी किया जाएगा.

(१)
२००९ के व्यक्ति
२००९ के "साल के व्यक्ति" का खिताब संयुक्त रूप से श्री नरेश डाकलिया, श्रीमती किरणमयी नायक और श्रीमती वाणी राव को दिया जाता है. इन तीनों ने अपनी-अपनी व्यक्तिगत छवि और संबंधों के कारण न केवल राजनैतिक अनुमानों को बल्कि दशकों के इतिहास को भी सर के बल पलट कर रख दिया, और राजनैतिक रूप से छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण शहर, राजनांदगांव, जो की स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री का विधान सभा क्षेत्र है, और प्रदेश के दो सबसे बड़े शहर, रायपुर और बिलासपुर, के वासियों का विशवास हासिल कर वहां के प्रथम नागरिक चुने गए.

प्रदेश के एक नेता ने हाल ही में इस ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया कि इन तीनों में ख़ास बात यह है कि वे प्रदेश के किसी भी बड़े नेता के "पिछलग्गू" नहीं कहे जा सकते; उनका स्वयं का अस्तित्व है, अपनी खुद की पहचान है. यही वजह है कि उन्हें बरसों से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होने के बावजूद कभी भी किसी चुनाव में पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया गया.

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Saturday, October 17, 2009

एक वकील से साक्षात्कार



अमित जोगी का नाम एक समय खासा चर्चित रहा है. विवादों और संघर्षों का अमित के साथ चोली-दामन का साथ रहा है. एक समय वे प्रदेश में शक्ति के दुसरे केंद्र के रूप में जाने जाते थे. उस दौर में अमित की तूती बोलती थी, यह कहना गलत नहीं होगा. हालांकि इन बातों से वे इनकार भी करते हैं. श्री जोगी के पास स्पष्ट सोच है और वे अपनी बातों को बड़े सलीके से रखते हैं. "छत्तीसगढ़ वॉच" ने उनके जीवन के अलग-अलग पहलुओं को स्पर्श करने की कोशिश की है.

आप शादी कब कर रहे हैं?
नए जीवन की नई शुरुआत है. पहले इरादा सेटल होने का है. माता-पिता जब आदेश देंगे, शादी कर लेंगे. वे ही रिश्ता तय करेंगे. मेरा मानना है की शादी दो विभिन्न परिवारों का सम्बन्ध है, जिसमे पहले बड़ों की सहमती होनी चाहिए. उसके बाद हमारी सहमती की बात आती है.

कैसी दुल्हन की कल्पना है?
घरेलू हो और माता-पिता की सेवा करे.

आपके आदर्श कौन हैं?
व्यक्तिगत जीवन में मेरे पिता जी ही मेरे आदर्श हैं. उनमें जबरदस्त विल-पॉवर है. उनसे मैं नीचे से ऊपर उठने की प्रेरणा प्राप्त करता हूँ. वैचारिक रूप से पंडित जवाहर लाल नेहरु मेरे आदर्श हैं. अनेकता में एकता की विचारधारा को उन्ही ने साकार किया है. देश स्वतंत्रता के पहले से ही अलग-अलग भाषा-बोली, वर्गों, वर्णों और क्षेत्रों में बंटा था. नेहरु जी ने ही सही मायनों में भारतीयता का निर्माण किया है.

पिता के किन गुणों से प्रभावित हैं?
पिता जी की दृढ़ इच्छा शक्ति से मैं बहुत प्रभावित हूँ. सोचता हूँ की वे इतनी शक्ति कहाँ से इकट्ठी करते हैं! वे प्रदेश की जनता से खुद को सीधा जुड़ा महसूस करते हैं. इसे मैं "excessive self identification" कहता हूँ. लोगों से सीधे तौर पर जुड़ने की यह प्रवृत्ति ही शायद उनकी इच्छा शक्ति बनती है. वे कहते भी हैं की मेरे दोनों पाँव नहीं है तो क्या हुआ, छत्तीसगढ़ की दो करोड़ जनता के चार करोड़ पाँव मेरे ही हैं. उन्हें ये ताकत जनता से मिलती है और मैं इन्ही बातों से प्रभावित हूँ.

पिता की लोकप्रियता के बारे में क्या कहते हैं?
छत्तीसगढ़ ने उन्हें बहुत प्यार दिया है.

आप भी लोकप्रिय हैं.
हो सकता है, लोग यह सोचते हैं, पर उनसे तुलना मैं नहीं कर सकता.

छत्तीसगढ़ से कांग्रेस क्यों उखड़ी?
उखड़ गई यह कहना ठीक नहीं है, यह कहना चाहिए की लड़खड़ा गई है. विशेष रूप से आदिवासी इलाकों में कांग्रेस संगठन से कमजोर है. कांग्रेस के ४ मोर्चा संगठनों की अपेक्षा RSS की ५७ संस्थाएं हैं जो इन इलाकों में गहरी पैठ बनाने में लगी हुई हैं. संकल्प कोचिंग, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण और वाल्मीकि आश्रम, और सरस्वती शिशु स्कूल आदि के माध्यम से वे लोग काम कर रहे हैं. वे २४ घंटे, सातों दिन और बारहों महीने सक्रीय हैं. लेकिन कांग्रेस के संगठन फील्ड में नहीं दिखते. फिर भी यह बात भी नकारी नहीं जा सकती की कांग्रेस, और विशेषकर नेहरु-गांधी परिवार, का यहाँ आज भी प्रभाव है. पर हमारा संगठन इसका लाभ नहीं ले पा रहा है. कांग्रेस को संघ से सीखना पड़ेगा, काम करना पड़ेगा.

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Monday, August 10, 2009

आई रे आई, एन.एस.यू.आई.

नोट: लेखक सन १९९८ से २००२ तक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, में एन.एस.यू.आई. के सक्रीय सदस्य के रूप में कार्यरत था.
छोटी सी आशा
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के छात्र संगठन, एन.एस.यू.आई., के चुनाव हो रहे हैं. उत्तराखंड के बाद छत्तीसगढ़ दूसरा राज्य है जिसे पार्टी ने चुनाव के लिए चुना है, जो अपने आप में हमारे लिए गर्व की बात है: कांग्रेस, कांग्रेस की विचारधारा, और कांग्रेस के युवा नेतृत्व, जिसके प्रतीक स्वयं राहुल गाँधी हैं, से सीधे जुड़ने का अवसर हमारे प्रदेश के छात्रों को मिला है. इसका पूरा पूरा लाभ उनको लेना चाहिए.

इस प्रक्रिया से प्रदेश में पार्टी में जो मायूसी के बादल छाय हुए हैं, हटना शुरू होंगे, और एक ऐसे नए नेतृत्व, जिसका सीधा सम्बन्ध यहाँ के छात्र जीवन से है, का जन्म होगा.

संगठन चुनाव पार्टी के लिए कितना महत्व रखते हैं, इसका अंदाजा केवल इस एक बात से लगाया जा सकता है: लोक सभा की शानदार जीत के ठीक बाद जब उस जीत के सूत्रधार, श्री राहुल गाँधी, से पुछा गया कि उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि वे क्या मानते हैं, तो उन्होंने दो-टूक जवाब दिया:
उत्तराखंड, पंजाब और गुजरात में हुए कांग्रेस के युवा संगठनों के चुनाव.

उनके इस कथन के पीछे बहुत ही सरल किन्तु दूरगामी सोच निहित है.

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Saturday, February 28, 2009

लखीराम अग्रवाल- एक श्रद्धांजली

एक युग का शांतिपूर्ण समापन
मैं अक्सर यह सोचता हूँ कि क्या छत्तीसगढ़ के शासक दल के भीष्म-पितामह, लखीराम अग्रवाल, अपनी मृत्यु के समय संतुष्ट थे? लगभग दो बरस पहले, सन् २००७ में, जब मैं उनसे मिलने उनके खरसिया निवास पर गया था, तब वे खुश तो नहीं थे. मैं मानता हूँ कि इस नाखुशी का कुछ हिस्सा उस समय हाल ही में उनके पुत्र, अमर अग्रवाल, को राज्य मंत्रिमंडल से हटाये जाने से सम्बंधित था. (ऐसा लगता है कि इस मामले में उनसे विचार विमर्श नहीं किया गया था.) लेकिन इस नाखुशी का ज्यादा बड़ा कारण न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि समूचे भारत में
भाजपा का कांग्रेसीकरण हो जाना था. आखिरकार, समकालीन संघ साहित्य में इस बात की दुहाई बार बार पढ़ने को मिलती है. इस वाक्यांश का लाल कृष्ण अडवानी की आत्मकथा और आर.एस.एस. के मासिक मुखपत्र "पांचजन्य" (Organiser) के सम्पादकीयों में उपयोग बढ़ता ही जा रहा है.

उस मुलाकात में हम अकेले नहीं थे. इसके पहले सन् २००३ में जब मैं उनसे मिला था, तब चर्चा के विषय का अनुमान लगाने में प्रेस ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. इस से हम दोनों को बेहद शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था क्योंकि उस नितांत अनौपचारिक बातचीत में राजनैतिक जोड़तोड़ की चर्चा कहीं थी ही नहीं. इसलिए इस बार मैंने इस मुलाकात में उपस्थित रहने के लिए प्रेस को आमंत्रित कर लिया था. बिना लागलपेट के हुई हमारी बातचीत में उन्होंने राज्य सरकार के कुछ नेताओं को
'औरंगजेब' की उपाधि देकर खलबली मचा दी थी. (यहाँ, उन्होंने बड़ी आसानी से हिन्दू समाज के पितृहंताओं के उदाहरणों की अनदेखी कर दी थी.) सर्वाधिक विस्मयजनक तो यह रहा कि किसी ने इस बारे में एक शब्द भी नहीं लिखकर मेरे इस विश्वास को और दृड़ बना दिया कि यदि दोगुलेपन और अनावश्यक गोपनीयता के बजाय कूटनीति खुलेपन और स्पष्टवादिता के साथ की जाए तो वह उनती बुरी नहीं है. उस समय कांग्रेस की कोटा उपचुनाव में जीत के बाद वे भाजपा के सत्ता में वापसी को लेकर आश्वस्त नहीं थे. इसके लिए वे युवाओं में बुजुर्गों के प्रति सम्मान की कमी को सीधे-सीधे जिम्मेदार मानते थे. इसके मतलब को समझ पाना ज्यादा कठिन नहीं था.

मेरे पिता जी अक्सर मुझसे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में जनसंघ-भाजपा की इमारत को खड़े करने का श्रेय पूरी तरह से श्री अग्रवाल और उनके लम्बे समय के सहयोगी रहे कुशाभाऊ ठाकरे को जाता है. इन दोनों ने उस युग की कांग्रेस की अजेय मशीनरी की पूरी शक्ति के खिलाफ काम करते हुए, हर संभव कठिनाइयों से जूझते हुए, नए रंगरूटों की तलाश में राजमाता ग्वालियर द्वारा दी गयी एक टूटी-फूटी खटारा जीप में अविभाजित मध्य प्रदेश के सुदूर अंचलों का दौरा करके, वर्त्तमान सत्ताधारी दल की नींव रखी. प्रश्न अब यह उठता है कि क्या उनकी पार्टी ने उन्हें अंततः छोड़ दिया था?
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Wednesday, January 21, 2009

छत्तीसगढ़ २००८: हम क्यों हारे?

पिछले महीने का अधिकांश हिस्सा एक दूसरे पर उँगलियाँ उठाने में ही बीत गया. एक पार्टी की तरह हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए था कि हमारे हार के लिए कौन से कारक उत्तरदायी हैं लेकिन हमने इस बात पर ध्यान दिया कि किस पर आरोप मड़े जा सकते हैं. ऐसी सोच के द्वारा अपने राजनैतिक विरोधियों से हिसाब तो चुकता किया जा सकता है लेकिन साथ ही साथ इससे आगामी लोक सभा चुनावों में पार्टी की संभावनों पर विपरीत प्रभाव भी पड़ रहा है. मेरे दृष्टिकोण से प्रमुख रूप से पाँच कारक हैं (बस्तर में पार्टी का सफाया, सतनामियों की संगठन में उपेक्षा, राकपा से गठबंधन, टिकट वितरण में देर, और "जोकोछो" नीति):

अ. बस्तर में पार्टी का सफाया
पहला और सबसे प्रमुख कारण बस्तर के आदिवासी अंचल में हमारा पूरी तरह से सफाया हो जाना है, जहाँ हम बारह सीटों में से ग्यारह में हार गए. इसके दो कारण हैं. एक, गलत उम्मीदवारों का चयन. उदाहरण स्वरुप इन चार मामलों पर गौर करें:

१. एक महिला १९९० से लगातार चुनाव हार रही है. जिन चार चुनावों में उन्हें टिकट दी गई उनमें से दो में उनकी जमानत भी जप्त हो गई. उनके सगे भाई अपने गाँव में सरपंच चुनाव हार गए; जनपद चुनाव में उनकी बहु की भी जमानत जप्त हो गई. इन सब के बावजूद उन्हें पांचवी बार कांग्रेस के उस दावेदार की टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया गया, जो पिछला चुनाव मात्र १००० वोटों से हारा था, और चुनाव हारने के बावजूद क्षेत्र में विपक्ष में सक्रिय भूमिका निभाता रहा.
२. नारायणपुर विधान सभा क्षेत्र में भानपुरी, मर्देपार और नारायणपुर, ये तीन ब्लाक आते हैं. भानपुरी और मर्देपार में १,३०,००० से अधिक मतदाता हैं; नारायणपुर इन दोनों ब्लाकों से १५० किलोमीटर से अधिक की दूरी पर हैं, और घने जंगलों में नक्सली प्रभावित क्षेत्र में हैं जहाँ सिर्फ़ १३००० मतदाता हैं. हमने नारायणपुर के व्यक्ति को टिकट दी.
३. बसपा और भाजपा के बाद हाल ही में वापस लौटे एक आदतन दल बदलू नेता जिन्होनें दल बदल के इस दौर में लड़ा गया हर चुनाव हारा है, उनकी दिल्ली में रहने वाली ऐसी बिटिया को टिकट दे दी गई जो स्थानीय बोली का एक शब्द भी नहीं बोल सकती थी.
४. एक सीट में जैन मतदाताओं की संख्या सिर्फ़ ५०० है, हमने यह जानते हुए भी कि भाजपा का उम्मीदवार भी इसी समुदाय से है, एक जैनी को उम्मीदवार बनाया.


यह बेहद स्पष्ट है कि इन चारों मामलों में हमारा चयन तर्क से परे था. यही बात कम से कम दो और विधान सभा क्षेत्रों, कोंडागांव और केशकाल, के बारे में भी कही जा सकती है, जहाँ जाने पहचाने चहरों की जगह पार्टी ने तुलनात्मक रूप से अनजान व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाना पसंद किया. यही कारण रहा की उत्तर बस्तर (जगदलपुर, नारायणपुर और कांकेर जिलों) में हमें हार का मुख देखना पड़ा.
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अमित ऐश्वर्य जोगी
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स्काइप: amit.jogi
याहू!: amitjogi2001