दो नई परम्पराएं
वैसे तो ३१ दिसम्बर और १ जनवरी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अन्य ३६३ दिनों की तरह सिर्फ दो तारीखें है. प्राकृतिक रूप से ये दूसरे दिनों से अलग नहीं हैं: दोनों दिन सुबह सूरज उगता है, और आकाश का अपना सफ़र पूरा कर शाम को ढल जाता है; चाँद-सितारे उसकी जगह ले लेते हैं.
देखा जाए तो इन दोनों तारीखों का महत्व मात्र मानव प्रजाति तक ही सीमित है और इस प्रजाति-विशेष पर भी इनका प्रभाव केवल मानसिक होता है. फिर भी इस मानसिक प्रभाव का अपना महत्त्व है: दोनों दिनों में अतीत और भविष्य का अनोखा सम्मिश्रण है: हर साल ३१ दिसम्बर की रात को जब १२ बजता है, तब उस एक क्षण में बीते हुए साल के गुजरने और नए साल के आने से जुड़ी सैकड़ों-अनगिनत भावनाओं का एकाएक समावेश हो जाता है.
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, मैं इस वर्ष से ब्लॉग पर दो नई परम्पराओं की शुरुआत कर रहा हूँ. पहली: अतीत को सलाम करते हुए, हर वर्ष उस व्यक्ति को "साल के व्यक्ति" के खिताब से नवाज़ा जाएगा जिसने हमारे प्रदेश, छत्तीसगढ़, को सर्वाधिक प्रभावित किया है. दूसरी: आने वाले साल में क्या-क्या होगा, उसकी भविष्यवाणी (और साल के अंत में, उस भविष्यवाणी का बेबाक विश्लेषण!).
भविष्य में इन दोनों पहलूओं पर आपके सुझाव आमंत्रित रहेंगे; और उन्हें ब्लॉग पर प्रमुखता से प्रकाशित भी किया जाएगा.
(१)
२००९ के व्यक्ति
२००९ के "साल के व्यक्ति" का खिताब संयुक्त रूप से श्री नरेश डाकलिया, श्रीमती किरणमयी नायक और श्रीमती वाणी राव को दिया जाता है. इन तीनों ने अपनी-अपनी व्यक्तिगत छवि और संबंधों के कारण न केवल राजनैतिक अनुमानों को बल्कि दशकों के इतिहास को भी सर के बल पलट कर रख दिया, और राजनैतिक रूप से छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण शहर, राजनांदगांव, जो की स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री का विधान सभा क्षेत्र है, और प्रदेश के दो सबसे बड़े शहर, रायपुर और बिलासपुर, के वासियों का विशवास हासिल कर वहां के प्रथम नागरिक चुने गए.
प्रदेश के एक नेता ने हाल ही में इस ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया कि इन तीनों में ख़ास बात यह है कि वे प्रदेश के किसी भी बड़े नेता के "पिछलग्गू" नहीं कहे जा सकते; उनका स्वयं का अस्तित्व है, अपनी खुद की पहचान है. यही वजह है कि उन्हें बरसों से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होने के बावजूद कभी भी किसी चुनाव में पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया गया.